पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के पूर्णिमा तिथि से लेकर अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक पितृपक्ष चलते हैं। पितृपक्ष यानी श्राद्ध का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है। पितृ पक्ष में पितरों की आत्म तृप्ति के लिए जो भी कर्म श्रद्धा से किया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है. श्राद्ध का तात्पर्य श्रद्धा से है. पितृपक्ष में पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद करके उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध न केवल पितरों की मुक्ति के लिए किया जाता है, बल्कि उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए भी किया जाता है। मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और हर प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। पितृपक्ष में श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वजों को जल देने का विधान है।
पराशर ऋषि ने बताया है कि स्थान और वहां की परिस्थिति के अनुसार जौ, काला तिल, कुश आदि से मंत्रोच्चार के साथ जो भी कर्म श्रद्धा से करते हैं, वहीं श्राद्ध कहलाता है. श्राद्ध से पितर प्रसन्न होते हैं तो वे अपने वंश को सुख, समृद्धि, संतान सुख आदि का आशीर्वाद देते हैं.
मंत्र
आवाहन: दोनों हाथों की अनामिका (छोटी तथा बड़ी उँगलियों के बीच की उंगली) में कुश (एक प्रकार की घास) की पवित्री (उंगली में लपेटकर दोनों सिरे ऐंठकर अंगूठी की तरह छल्ला) पहनकर, बाएं कंधे पर सफेद वस्त्र डालकर दोनों हाथ जोड़कर अपने पूर्वजों को निम्न मन्त्र से आमंत्रित करें
'ॐ आगच्छन्तु मे पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम'
ॐ हे पितरों! पधारिये तथा जलांजलि ग्रहण कीजिए।
तर्पण: जल अर्पित करें
निम्न में से प्रत्येक को 3 बार किसी पवित्र नदी, तालाब, झील या अन्य स्रोत (गंगा / नर्मदा जल पवित्रतम माने गए हैं) के शुद्ध जल में थोडा सा दूध, तिल तथा जावा मिला कर जलांजलि अर्पित करें।
पिता हेतु --
(गोत्र नाम) गोत्रे अस्मतपिता पिता का नाम शर्मा वसुरूपस्त्तृप्यतमिदं तिलोदकम (गंगा/नर्मदा जलं वा) तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः।
------. गोत्र के मेरे पिता श्री वसुरूप में तिल तथा पवित्र जल ग्रहण कर तृप्त हों।
तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः।
उक्त में अस्मत्पिता के स्थान पर अस्मत्पितामह पढ़ें --
पिता के नाम के स्थान पर पितामां का नाम लें ----
माता हेतु तर्पण -
(गोत्र नाम) गोत्रे अस्मन्माता माता का नाम देवी वसुरूपास्त्तृप्यतमिदं तिलोदकम (गंगा/नर्मदा जलं वा)
तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः।
........... गोत्र की मेरी माता श्रीमती ....... देवी वसुरूप में तिल तथा पवित्र जल ग्रहण कर तृप्त हों। तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः तस्मै स्वधा नमः।
निस्संदेह मन्त्र श्रद्धा अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ माध्यम हैं किन्तु भावना, सम्मान तथा अनुभूति अन्यतम हैं।
जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार तथा दक्षिण दिशा में 14 बार अर्पित करें